Book Title: Stotra Ras Samhita
Author(s): Lalitprabhsagar, Chandraprabhsagar, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Siddhiraj Jain
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स्तोत्र-रास-संहिता
कलिमल-मुक्का रायमरालुव्व धावंति ||२|| असरिसमव-दुहदंदोलिघोलियाण जियाण जयनाह । तं चिय इक्को सरणं सीयत्ताणं व दिणनाहो ॥३|| तिहुयणपहु ! अमयं पिव सम्मं तुह पवयणे परिणयंमि । अजरामरभाव खलु लहंति लहु लहुय कम्माणो ||४|| देव ! वरनाण-दंसण-'. दुहावि तुह दंसणेण देहीणं । नीरेणं चीवराणं खणेण खयमेइ मालिन्नं ||५|| तुहसमरणेण सामिय ! किलिट्ठ- . कम्मोवि सिज्झए जीवो । किं न हु जायइ कणगं लोहंपि. रसस्स फरिसेणं ||६|| पहु ! तुह गुणथुणणेणं विसुद्धचित्ताण भवियसत्ताणं । घणनीरेण व जंबूफलाई विगलंति पावाई ||७|| दंसण-पवणे नयणे भालं नालं हवइ तुह नेमणे । ता पच्चक्खीमावं लहु मह तिजईस ! वियरेसु ||८|| इय संथुओसि देविंदविंदवंदिय ! जुगाइजिणचंद ! मह देसु निप्पकपं भवे-भवे नियपए भत्ति ॥९||
महावीर-स्तोत्र
जइजा समणो, भयवं, महावीरे जिणुत्तमे। लोगनाहे सयंबुद्धे, लोगंतिविबोहिए ||१|| वच्छरं दिण्णदाणोहे, संपूरियजणासए । नाणत्तयसमाउत्ते, पुत्ते सिद्धत्थराइणो |२|| चिच्चा रज्जं च रठं च, पुरं अंतेउरं तहा। निक्खमित्ता आगाराओ, पव्वइए अणगारियं ||३|| परी
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