________________
नारदीय मनुस्मृति
३. उपनिधिकं द्वितीयं विवाद पदम् : २७८ औपनिधि निक्षेप का वर्णन ( धरोहर ) ।
४. सभ्य समुत्थानं तृतीयं विवाद पदम् : २७६ सम्भूय समुत्थान (Partnership) वाणिज्य व्यवसायी साझेदार होकर व्यापारादि करते हैं - उसे सम्भूय समुत्थान कहते हैं ५. वत्ताप्रदानिकं चतुर्थ विवाद पदम् : २८१
दत्ता प्रदानिक
जो नियम के विरुद्ध दिया है वह वापिस करने का निदान क्या अदेय क्या वापिस लेना । आपत्ति पर भी जो किसी को समर्पण कर दिया वह फिर नहीं दिया जाता ६. अभ्युपेत्याशुश्रूषा पञ्चमं विवाद पदम् : २८२ शुश्रूषक ५ प्रकार, काम करने वाले ४ प्रकार
कर्म के भेद - शुद्ध कर्म करने वाला
आचार्य की शुश्रूषा आदि
दास के प्रकार
स्वामी के साथ उपकार करने वाला दासत्व से छुटकारा पाता है संन्यास से वापिस आने पर गृहस्थाश्रम में पुनः प्रवेश बलात् दास बनाये हुए के छुटकारे का उपाय
७. वेतनस्यानपाकर्म षष्ठं विवाद पदम् : २८६
बकरी भेड़ पालने वाले अनुचरों पर विवाद अनुचित सहवास का दण्ड
८. अस्वामिविक्रयः सप्तमं विवाद पदम् : २८८ जिस धन पर अधिकार नहीं है उसके बेचने के विषय में, पृथ्वी में जो धन गड़ा है उस पर अधिकार
अस्वामि विक्रय धन चोरी के धन के तुल्य है चोरी का धन लेने वाला दण्ड का भागी पृथ्वी पर पड़ा या गड़ा धन राजा का होता है
६. विक्रीयासम्प्रदानमष्टमं विवादपदम् : २८६
बेचकर न देने का विवाद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
११.
१-८
१-१६
५
२
५
१३-२३
२४-२६
२८
३३
३६
१४-१८
१६-२३
२
५
६
www.jainelibrary.org