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६.
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कल्प - पत्र २२ । पोथी नम्बर २४५ और पोथी नम्बर २५२ में अनुक्रम से पेज १० । ए तथा पेज १६ ए पर गुरु की नौ अङ्ग की पूजा करने का स्पष्ट विधि लिखा है ।
प्रतिष्ठा कल्प तथा विधिविधान के ग्रंथों में नौ अङ्गी गुरुपूजन के इतने उल्लेख दिखाने के बाद अन्य ग्रंथों में आते हुए निम्न उल्लेख भी देख लें ।
१३.
पं० श्री हंसग्नसूरिजी कृत गद्य 'शत्रुजय माहात्म्य' में भी • उल्लेख हैं ।
श्री मेघविजय गणि रचित 'भविष्यदत्त चरित्र' में भी उल्लेख हैं । श्री ज्ञानसागर गणि शिष्य विरचित 'धन्यचरित्र' में भी गुरु की नौ अभी पूजन का उल्लेख है ।
१०. जगद्गुरु श्री हीरसूरीश्वरजी महाराजा के जगह-जगह पर हुए अङ्ग के पूजन का उल्लेख है । ये उल्लेख 'विजय - प्रशस्ति' कर्त्ता श्री हेमविजय गणि, टीकाकार श्री गुणविजय गणि- १३, श्लोक १३ पृ० ४६० पर है |
११. जगद्गुरु — काव्य रचयिता श्री पद्मसागर गणि। प्रकाशक श्रीयशोविजय ग्रंथमाला पृ० २३ श्लोक १६१ में भी उल्लेख है ।
१२. मंत्री श्री तेजपाल ने आचार्यदेवादि मुनिवरों की की हुई नवांगी पूजा का उल्लेख श्री प्रशस्ति संग्रह, संपादक अमृतलाल, मगनलाल शाह - प्रकाशक - देशविरति धर्माराधक समाज पृ० १६० पर है ।
श्रावक कवि ऋषभदास रचित 'हीरसूरिजी म० के रास' में कवि ने जगद्गुरु श्री हीरसूरिजी ने दीक्षा के पूर्व में स्वगुरु की की हुई नौ अङ्ग की पूजा का और बाद में जगद्गुरु के हुए नवांगी पूजन की बातें लिखी है ।
१४. श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म० की कुमारपाल राजा ने सुवर्णकमलों से नवांग गुरु पूजा की थी । प्रबन्ध ग्रन्थों में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है । इससे स्पष्ट है कि आचार्य श्री हेमचन्द्र सूरिजी महाराजा तथा जगद्गुरु श्री हरिसूरिजी महाराज जैसे महापुरुषों ने