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हमारे से जितना उपदेश में कहा जाय उतना ही बोला जा सकता है। आदेश में जो कहा जाता है वह हम नहीं बोल सकते। हम आदेश करें और उसे नहीं मानें तो उसका पाप हमको लगता है।
प०पू० कलिकाल-कल्पतरु आचार्यदेव श्री विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
भादरवा सुदी पंचमी को उपाध्याय श्रीधर्मसागर जी म. ने 'मरी - हुई माता जैसी कही है । और चतुर्थी को कल्पलता जैसी कही है। देखो कल्पकिरणावली में आपके अक्षर"मुञ्च मृतमातृसदृशीं पञ्चमी, स्वीकुरु च कल्पलतासमां चतुथीम्" | अर्थ-मरी हुई माता जैसी पंचमी को छोड़ दो और कल्पलता समान चतुर्थी को स्वीकार करो। परन्तु आश्चर्य है कि इतने शास्त्रपाठ होते हुए भी आज कई लोग पञ्चमी की संवत्सरी करने को तैयार हुए है । भादरवा सुदी पंचमी की वृद्धि में भादरवा सुदी · बीज की वृद्धि करनी यांनी भादरवा सुदी पहली पंचमी को हो संवत्सरी होती है। ..