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प्र० - जंगल में से साधू जाते हों और कोई मृग जीवन बचाने हेतु भाग रहा हो और साधू ने उसे देखा हो कि कौन-सी दिशा में गया है । उसके पीछे कोई शिकारी आकर पूछे तो साधू झूठा जवाब देवे न ? तो क्या महाव्रत का भंग हुआ ऐसा माना जायगा ?
उ०- नहीं, उसमें महाव्रत का भंग नहीं होता । साधु को झूठ नहीं बोलने की प्रतिज्ञा है । जितना सच्चा जाने वह सब बोलना ही वैसा नहीं है। सच्चा भी अहितकर नहीं बोल सकता वैसी आज्ञा है । इसमें— तपोवन में आज्ञा नहीं है ।
एक मन्दिर है । वहाँ वृक्ष उगा । वह वृक्ष गिरे तो मन्दिर टूटे वैसा लगे तो हम श्रावकों को समझावें । समझाने पर भी यदि श्रावक नहीं माने तो हम स्वयं वृक्ष उखाड़ यह आज्ञा । ऐसे समय यदि अपवाद आज्ञा नहीं पाले तो पाप लगता है । वृक्ष काटा जा सकता है | परन्तु वनस्पति नहीं की जा सकती, प्रेरणा भी नहीं की जा सकती ।
प्र०—क्या शासन के उत्कर्ष के लिये नहीं ?
उ० - जो ऐसा माने उसका वे जाने परन्तु ऐसा बोला भी नहीं जा सकता, पाप लगता है ।
उ०
हमारे से जितना बोला जाय उतना ही बोल सकते हैं, ज्यादा कुछ भी नहीं बोल सकते ।
आज तुम लोग भिखारियों को भीख नहीं देते, और हमको चाहिये उतनी भिक्षा मिलती है । तो हम तुम्हारे यहाँ से लाकर भिखारियों को देने लगे तो तुम तुम्हारे घर में हमको आने दोगे ? हमारी पूरी विधि अलग है | साधु श्रावक को पहचाने और श्रावक साधु को पहचाने तो काम हो जाय ।
प्रo - आज पुस्तकादि में भी अमुक की प्रेरणा से छपा वैसा लिखा जाता है।
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- साध प्रेरणा नहीं कर सकते । वैसा करते हों तो वह गलत है । उपदेश से हुआ वैसा कहा जाता है ।