Book Title: Shramanyopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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१४
श्रामण्योपनिषद् (वसन्ततिलका) कारुण्यपुण्यहृदयं सदयं सदापि,
यत्तूलपूलनवनीतसुकोमलं स्यात् । तन् मार्दवोपनिषदत्र पराऽपरस्तु,
तस्यैव विस्तर इहैव ततो यतध्वम् ॥१०॥
॥ऋजुता ॥ ऋजुतातुङ्गताशालि-शिखरिशिखरस्थितम् । माषतुषमुनिं वन्दे, वन्दे च कूरगड्डुकम् ॥१॥
प्रगुणाः प्रगुणान् यान्ति, वक्रा नक्राकरं भवम् । प्रगुणता प्रगुणोऽध्वा, मुक्तेरन्यो भवस्य च ॥२॥
शुद्धिर्हि ऋजुभूतस्य, धर्मो शुद्धस्य तिष्ठति । परमं स्याच्च निर्वाणं, घृतसिक्त इवानलः ॥३॥

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