Book Title: Shramanyopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 117
________________ ११४ श्रामण्योपनिषद् त्यागधर्मः त्यक्तसंगं मुदात्यन्तं त्यागं सर्वसुखाकरम् । पूजया परया भक्त्या पूजयामि तदाप्तये ॥१॥ ॐ ह्रीं परब्रह्मणे उत्तमत्यागधर्मांगाय नमः जलाद्ययं निर्वपामीति स्वाहा । चाउ वि धम्मंगउ तं जि अभंगउ णियसत्तिए भत्तिए जणहु । । पत्तहं सुपवित्तहं तव-गुम-जुत्तहं परगइ-संबलु तं मुणहु ॥२॥ चाए अवगुण-गणु जि उहट्टइ, चाए णिम्मल-कित्ति पवट्टइ । चाए वयरिय पणमइ पाए, चाए भोगभूमि सुह जाए ॥३॥ चाए विहिज्जइ णिच्च वि विणए, सुहवयणई भासेप्पिणु पणए । अभयदाणु दिज्जइ पहिलारउ, जिमि णासइ परभव दुहयारउ ॥४॥ सत्थदाणु वीजउ पुण किज्जइ, णिम्मल णाणु जेण पाविज्जइ । ओसहु दिज्जइ रोय-विणासणु, __कह वि ण पेच्छइ वाहि-पयासणु ॥५॥ आहारें धण-रिद्धि पवट्टइ, चउविहु चाउ जि एहु पवट्टइ । अहवा दुट्ठ-वियप्पहं चाएं, चाउ जि एहु मुणहु समवाएं ॥६॥ घत्ता दुहियहं दिज्जइ दाणु किज्जइ माणु जि गुणियणहं । दय भावियइ अभंग दंसणु चिंतिज्जइ मणहं ॥७॥ ॐ हीं परब्रह्मणे उत्तमत्यागधर्मांगाय पूर्वार्ध्य निर्वपामीति स्वाहा ।

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