Book Title: Shramanyopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
View full book text
________________
१२४
श्रामण्योपनिषद् उत्तम शौच लोभ-परिहारी, सन्तोषी गुण-रतन-भण्डारी । उत्तम संयम पालै ज्ञाता, नर-भव सफल करै ले साता । उत्तम तप निरवांछित पालै, सो नर करम-शत्रु को टालै । उत्तम त्याग करै जो कोई, भोगभूमि-सुर-शिवसुख होई ।। उत्तम आकिंचन व्रत धारै, परम समाधि दशा विसतारै । उत्तम ब्रह्मचर्य मन लावै, नर-सुर सहित मुकति-फल पावै॥
दोहा करै करम की निरजरा, भव पीजरा विनाश । अजर अमर पद को लहै, 'द्यानत' सुख की राश ।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमामार्दवार्जवसत्यशौचसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्यदशलक्षणधर्माय पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा ।
- निव२ अर्यना'मांथी सामा२.
खंती मद्दवज्जव मुत्ती तव संजमे अ बोधव्वे। सच्चं सोयं आकिंचणं च, बंभं च जइधम्मो ॥
(दशवैकालिकनियुक्तौ-२४८)

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144