Book Title: Shramanyopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 121
________________ ११८ श्रामण्योपनिषद् अमल अखण्डित सार, तन्दुल चन्द्र समान शुभ । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजौं सदा ॥ ॐ हीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । फूल अनेक प्रकार, महकें ऊरध-लोक लों । . भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजौं सदा ॥ ॐ हीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय पुष्पं निर्वामीति स्वाहा । नेवज विविध विहार, उत्तम षट-रस-संजुगत । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । बोति-कपूर सुधार, दीपक-ज्योति सुहावनी । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । अगरु धूप विस्तार, फैले सर्व सुगन्धता । भव-आताप निवार, दस-लच्छन पूजौं सदा ॥ ॐ हीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय धूप निर्वपामीति स्वाहा । फल की जाति अपार, घ्रान-नयन-मन-मोहने । भव आताप निवार, दस-लच्छन पूजौं सदा ॥ ॐ हीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय फलं निर्वपामीति स्वाहा । आठों दरब संवार, ‘द्यानत' अधिक उठाह सौं । भव आताप निवार, दस-लच्छन पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।

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