Book Title: Shramanyopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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श्रामण्योपनिषद् कपट न कीजै कोय, चोरन के पुर ना बसै ।
सरल सुभावी होय, ताके घर बहु सम्पदा ॥ उत्तम आर्जव-रीति बखानी, रंचक दगा बहुत दुखदानी । मन में हो सो वचन उचरिये, वचन होय सो तनसौं करिये ॥ करिये सरल तिहँ जोग अपने, देख निरमल आरसी । मुख करै जैसा लखै तैसा, कपट-प्रीति अँगार-सी ॥ नहिं लहै लछमी अधिक छल करि, करम-बन्ध-विशेषता । भय त्यागि दूध बिलाव पीवै, आपदा नहिं देखता ॥
ॐ ह्रीं उत्तम-आर्जवधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । .. कठिन वचन-मति बोल, पर-निन्दा अरु झूठ तज ।
साँच जवाहर खोल, सतवादी जग में सुखी ॥ उत्तम सत्य-बरत पालीजै, पर-विश्वासघात नहिं कीजै । साचे-झूठे मानुष देखो, आपन पूत स्वपास न पेखो ॥ पेखो तिहायत पुरुष साँचे को दरब सब दीजिये । मुनिराज-श्रावक की प्रतिष्ठा साँच गुण लख लीजिये ॥ ऊँचे सिंहासन बैठि वसु नृप, धरम का भूपति भया । वच झूठसेती नरक पहुँचा, सुरग में नारद गया ॥
ॐ हीं उत्तमसत्यधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । धरि हिरदै सन्तोष, करहु तपस्या देह सौं । शौच सदा निरदोष, धरम बड़ो संसार में ॥

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