Book Title: Shramanyopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 108
________________ ____ १०५ १०५ श्रामण्योपनिषद् कृष्णागुरु-प्रभृति-सर्व-सुगन्ध-द्रव्यै धूपैस्तिरोहित-दिशा-मुख-दिव्य-धूमैः । सम्पूजयामि दश-लक्षण-धर्ममेकं संसार-ताप-हननाय शमादियुक्तम् ॥८॥ ___ ॐ ह्रीम् उत्तमक्षमादिदशधर्मांगाय दुष्टाष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वापामीति स्वाहा । पूगैर्लवङ्ग-कदली-फल-नारिकेलैर् हृद्-घ्राण-नेत्र-सुखदैः शिव-दान-दक्षैः । सम्पूजयामि दश-लक्षण-धर्ममेकं संसार-ताप-हननाय शमादि-युक्तम् ॥९॥ ___ॐ ह्रीम् उत्तमक्षमादिदशधर्मांगाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । पानीय-स्वच्छ-हरि-चन्दन-पुष्प-सारैः शालीय-तन्दुल-निवेद्य-सुचन्द्र-दीपैः । धूपैः फलावलि-विनिर्मित-पुष्प-गन्धैः पुष्पाञ्जलीभिरिह धर्ममहं समर्चे ॥१०॥ ॐ ह्रीम् उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्यधर्मेभ्योऽनर्घ्यपदप्राप्तयेऽयं निर्वपामीति स्वाहा । ससनेही प्यारा रे संयम कब ही मिले ???

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