Book Title: Shramanyopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
View full book text
________________
श्रामण्योपनिषद्
घत्ता
भव मुणिवि अणिच्चउ धम्म सउच्चउ पालिज्जइ एयग्गमणि ।
सुह - मग्ग - सहायउ सिव-पय-दायउ
अण्णु म चिंतह किं पि खणि
१११
11011
ॐ ह्रीं परब्रह्मणे उत्तमशौचधर्मांगाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
संयमधर्मः
दयाढ्यं संयमं मुक्तिकर्तारं स्वेच्छयातिगम् । पूजया परया भक्त्या पूजयामि तदाप्तये
11211
ॐ ह्रीं परब्रह्मणे उत्तमसंयमधर्मांगाय नमः जलाद्यर्घ्यं निर्वपामीति
स्वाहा ।
संजमु जणि दुल्लहु तं पाविल्लहु जो छंडइ पुणु मूढमइ । सो भमइ भवावलि जर - मरणावलि किं पावेस - पुणु सुइ ॥२॥
संजमु पंचिंदिय-दंडणेण, संजमु जि कसाय - विहंडणेण । संजमु दुद्धर-तव-धारणेण, संजमु रस- चाय - वियारणेण ॥३॥ संजमु उववास-विजंभणेण, संजमु मण - पसरहं थंभणेण । संजमु गुरु- काय - किलेसणेण, संजमु परिगह - गह- चायणेण ॥४॥ संजमु तस - थावर - रक्खणेण, संजमु सत्तत्थ - परिक्खणेण । संजमु तणु-जोय - णियंतणेण, संजमु बहु-गमणु चतएण ||५|| संजमु अणुकंप कुणंतरण, संजमु परमत्थ- वियारणेण । संजमु पोसइ दंसणहं पंथु, संजमु णिच्छय णिरु मोक्ख-पंथु ॥६॥

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144