Book Title: Shramanyopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 113
________________ ११० ला ॥१. श्रामण्योपनिषद् घत्ता सच्चु जि धम्म-फलेण केवलणाणु लहेइ जणु । तं पालहु भो भव्व भणहु म अलियउ इह वयणु ॥८॥ ___ ॐ ह्रीं परब्रह्मणे सत्यधर्मांगाय पूर्णाऱ्या निर्वपामीति स्वाहा । शौचधर्मः शौचं लोभ-विनिर्मुक्तं मुक्ति-श्री-चित्त-रञ्जकम् । पूजया परया भक्त्या पूजयामि तदाप्तये ___ ॐ हीं परब्रह्मणे उत्तमशौचधर्माङ्गाय नमः जलाद्ययं निर्वपामीति स्वाहा । सउच्चु जि धम्मंगउ तं जि अभंगउ भिण्णंगउ उवओगमउ । जर-मरण-विणासणु तिजगपयासणु झाइज्जइ अह-णिसि जि धुए ॥२॥ धम्म सउच्चु होइ मण-सुद्धिएँ, धम्म सउच्चु वयण-धण-गिद्धिएँ। धम्म सउच्चु कसाय अहावें, धम्म सउच्चु ण लिप्पइ पावें ॥३॥ धम्म सउच्चु लोहु वजंतउ, धम्म सउच्चु सुतव-पहि जंतउ। धम्म सउच्चु बंभ-वय-धारणि, धम्म सउच्चु मयट्ठ-णिवारणि ॥४॥ धम्म सउच्चु जिणायम-भणणे, धम्म सउच्चु सगुण-अणुमणणे । धम्म सउच्चु सल्ल-कय-चाए, धम्म सउच्चु जि णिम्मलभाए ॥५॥ अहवा जिणवर-पुज्ज-विहाणे, __णिम्मल-फासुय-जल-कय-हाणे । तं पि सउच्चु गिहत्थहं भासिउ, ___ण वि मुणिवरहं कहिउ लोयासिउ ॥६॥

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