Book Title: Shramanyopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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श्रामण्योपनिषद्
१०३ परिशिष्ट-८) दशलक्षणधर्म-पूजा
(महाकवि-रइघू-कृता) उत्तम-क्षान्तिकाद्यन्त-ब्रह्मचर्य-सुलक्षणम् । स्थापयेद्दशधा धर्ममुत्तमं जिनभाषितम् ॥१॥
ॐ ह्रीम् उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ हीम् उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ।
ॐ ह्रीम् उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । प्रालेय-शैल-शुचि-निर्गत-चारु-तोयैः
शीतैः सुगन्ध-सहितैर्मुनि-चित्त-तुल्यैः । सम्पूजयामि दशलक्षण-धर्ममेकं संसार-ताप-हननाय शमादियुक्तम्
॥२॥ ॐ ह्रीम् उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्यधर्मेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । श्रीचन्दनैर्बहुल-कुंकुम-चन्द्र-मित्रैः
संवास-वासित-दिशा-मुख-दिव्य-संस्थैः । सम्पूजयामि दश-लक्षण-धर्ममेकं संसार-ताप-हननाय शमादियुक्तम्
॥३॥ ॐ ह्रीम् उत्तमक्षमादिदशधर्मांगाय संसार-तापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।

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