________________
श्रमण महावीर उत्तर मिल गया।
भगवान महावीर महाराज सिद्धार्थ के पुत्र थे । सिद्धार्थ वज्जिसंघ-गणतंत्र के एक शासक थे। एक शासक के पुत्र होने के कारण वे वैभवपूर्ण वातावरण में पलेपुसे थे। उन्हें गरीबी, विषमता और भेदभाव का अनुभव नहीं था और न उन्हें इस का अनुभव था कि साधारण आदमी किस प्रकार कठिनाइयों और विवशताओं का जीवन जीता है।
एक दिन राजकुमार महावीर अपने कुछ सेवकों के साथ उद्यान-क्रीड़ा को जा रहे थे। राजपथ के पास एक बड़ा प्रासाद था । जैसे ही राजकुमार उसके पास गए, वैसे ही उन्हें एक करुण क्रन्दन सुनाई दिया। लगाम का इशारा पाते ही उनका घोड़ा ठहर गया। राजकुमार ने अपने सेवक से कहा, 'जाओ, देखो, कौन किस लिए बिलख रहा है ?'
सेवक प्रासाद के अन्दर गया। वह स्थिति का ज्ञान प्राप्त कर वापस आ गया। राजकुमार ने पूछा, 'कहो, क्या बात है ?'
'कुछ नहीं, महाराज ! यह घरेलू मामला है।' 'तो फिर इतनी करुण चीख क्यों ?' 'गृहपति अपने दास को पीट रहा है।' 'क्या दास उसके घर का आदमी नहीं है ?' 'घर का जरूर है पर घर में जन्मा हुआ नहीं है, खरीदा हुआ आदमी है।'
'क्या हमारे शासन ने यह अधिकार दे रखा है कि एक आदमी दूसरे आदमी को खरीद ले ?' _ 'शासन ने न केवल खरीदने का ही अधिकार दे रखा है, किन्तु क्रीत व्यक्ति को मारने तक का अधिकार भी दे रखा है।'
राजकुमार का मन उत्पीड़ित हो उठा। वे उद्यान-क्रीड़ा को गए बिना ही वापस मुड़ गए। अब उनके मस्तिष्क में ये दो प्रश्न बार-बार उभरने लगे-यह कैसा शासन, जो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य को खरीदने का अधिकार दे ?
यह कैसा शासन, जो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य को मारने का अधिकार दे ?
उनका मन शासन के प्रति विद्रोह कर उठा । उनका मन ऐसा जीवन जीने के लिए तड़प उठा, जहां शासन न हो।
महावीर को बचपन से ही सहज सन्मति प्राप्त थी। निमित्त का योग पाकर उनकी सन्मति और अधिक प्रबुद्ध हो गई। उन्होंने शासन की परम्पराओं और विधि-विधानों से दूर रहकर अकेले में जीवन जीने का निश्चय कर लिया।
वर्द्धमान शासन-मुक्त जीवन जीने की तैयारी करने लगे। नंदिवर्द्धन को इसका पता लग गया । वे वर्द्धमान के पास आकर बोले, "भैया ! इधर माता-पिता का वियोग और इधर तुम्हारा घर से अभिनिष्क्रमण ! क्या मैं दोनों वज्रपातों को सह