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है ? भुवनपतिदेवता=अधोलोक के रत्नप्रभानारकी के आन्तरोंमें ७७२००००० भवनों में। वाणव्यंतरोंके असंख्यात नगर तिरछेलोकमें हैं । और ज्योतिषीयोंके भी असंख्याते विमान तिरछा लोकमें हैं वे उनके स्थान हैं । वैमानिक देवता उर्वलोकमें उत्पन्न होते हैं, उनके ८४६७०२३ विमान हैं। इन्हीं स्थानोमें देवता उत्पन्न होते हैं । उत्पात, समुद्घात, स्थान, लोकके असंख्यातमें भाग हैं। देवता नारकीके स्थान और परिवारका वर्णन सविस्तार देखो भाग १३ वां
(२०) सिद्धभगवानका स्थान कहां हैं ? चौदह राजलोकके अग्रभाग अर्थात् सिद्धशिलाके ऊपर एक योजनके २४ में भाग यनि ३३३ धनुष्य ३२ अंगुल प्रमाण क्षेत्र हैं ! वहां शाश्वत अबाधित सुख में सिद्ध भगवान विराजते हैं । इति ।
- यंत्र मागणा उत्पन्न समुद्घात | संस्थान पांच सूक्ष्म स्थावर प. अ. सर्वलोक सर्वलोक । सर्वलोक बादर पृथ्वी पाणी वना. अप. सर्वलोक सर्वलोक लो. प. मा. , तेउकाय अपर्याप्ता ती_लोक सर्वलोक मनुष्यलोक ,, वायुकायके ,, सर्वलोक। सर्वलोक लो.म.भा. ,, तेउकायके पर्याप्ता लोक० असं. लोक.असं. मनु. लोकमें , वायुकायके ,, लोकके घणा लोककेघणा लोकके घणा
असं. भाग असं०भाग असं. भाग, , पृथ्वी पाणी पर्या० लोक० असं लोक.असं लोक. असं ..,, वनस्पति पर्या० सर्वलोकमें सर्वलोकमे लाक. असं. शेष १९ दंडकके जीवोंके लोक. असं.लोक. असं.लोक. असं.
सेवभंते सेवंभंते तमेवसचम् ।