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भदाईद्वीप और दो समुद्रोमें तथा निर्याघातापेक्षा पंद्रह कर्मभूमिमें और व्याघातापेक्षा पांचो महाविदेहमें बादरतेउकायके स्थान हैं, उत्पात, समुद्घात और स्थान तीनों, लोकके असंख्यातमें भाग हैं.
(८) बादरतेउकाय के अपर्याप्ताका स्थान कहां है ? जहां पर बादरतेउकायके पर्याप्ताका स्थान है वहीं अपर्याप्ताका भी स्थान है । उत्पात लोकके असंख्यातमैं भाग “ दोसु उद्दु कवाडेसु तिरिय लोयंतढेव " अर्थात् उर्व १८०० योजन, तिरछा ४५ लक्ष योजनका कपाट तिरछालोकके अन्त तक याने स्वयंभूरमण समुद्र के बाहरी वेदिका तकके जीव आके मनुष्यलोकके तेउकायपने उत्पन्न होते हैं। समुद्घात सर्व लोकमें स्थान लोकके असंख्यातमें भाग ।।
(९) सूक्ष्मतेउकायके तीनों बोल सर्व लोकमें पृथ्वीकायवत्.
(१०) बादरवायुकाय पर्याप्ताके स्थान कहाँ हैं ? सात धनवायु, सात तनवायु, धनवायु तनवायुके बलीयोमें अधोलोकके, पातालकलशा, भवनपतिके भवनों में, भवनके विस्तारमें, भवनके छिद्र में, नरक और नरकके विस्तारमें । उर्वलोक वैमान में, वैमान के विस्तारमें, मानके छिद्रौ । तिरछालोक-पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशा, विदिशामें, सर्व लोक काशके छिद्रमें यानि सर्व लोककी पोलारमें वायुकायका स्थान हैं । उत्पन्न और समुद्घात लोकके घने असंख्यात भागमें हैं। . . (११) बादरबायुकाय के अपर्याप्ताका स्थान कहां है ? जहां बादरवायुकायका पर्याप्ता है वहां अपर्याप्ता भी हैं। उत्पात समुद्घात सर्व लोकमें, स्थान लोकके घणे असंख्यावमें भाग है।