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श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान - पुष्पमाला पु० नं० ४६ श्री रत्नप्रभसूरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः शीघ्रबोध भाग ११ वां
थोकडा नं० १३३
श्री पन्नवणा सूत्र पद २ स्थानपद
चौवीस दंडक के जीव कौनसे स्थानमें, कितने क्षेत्रमें और कहांसे आर्के उत्पन्न होते हैं व समुद्घात कितने क्षेत्र में करते हैं यह सब इस थोकड़ेद्वारा समजाये जायेंगे ।
(१) बादर पृथ्वीकाय के पर्याप्ता जीवों के स्थान कहां ११ सातों नारक के पृथ्वीपिंड और ईसीपभारापृथ्वी, अधोलोकमें पातालकलशा, भुवनपतिदेव के भवन ( रत्नमय हैं ), नारकीके नरकावास कुंभी आदि ( पृथ्वीमय है ) उर्ध्वलोक में विमान, विमानका पृथ्वीपिंड और देवताओंके शयनासनादि जितने रत्नोंके पदार्थ हैं वे सब पृथ्वीकायके उत्पन्न होनेका स्थान हैं. तिरछेलोकमें पर्वत, कूट, शिखर, प्रासाद, विजय, बक्खारापर्वत, भरतादि क्षेत्र और वेदिकादि साश्वत पदार्थ में पृथ्वीकाय के जीव उत्पन्न होते हैं जिनके तीन भेद हैं।
(१) उत्पन्न - लोकके असंख्यात में भागसे आके उत्पन्न होते हैं।
(२) स्थान - उत्पन्न होनेका स्थान भी लौकके असंख्यात भाग है।