Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
(२.)
षटूखंडागमकी प्रस्तावना ___ इस पूर्वोक्त प्रक्रियाको हम बेलनाकार गरेका सरसोंके बीजोंसे 'शिखायुक्त पूरण' कहेंगे । अब उपर्युक्त शिखायुक्त पूरित गड़ेमेंसे उन बीजोंको निकालिये और जम्बूद्वीपसे प्रारंभ करके प्रत्येक द्वीप और समुद्रके वलयों में एक एक बीज डालिये । चूंकि बीजोंकी संख्या सम है, इसलिये अन्तिम बीज समुद्रवलय पर पड़ेगा । अब एक बीज ब, नामक गड़ेमें डाल दीजिये, यह बतलानेके लिये कि उक्त प्रक्रिया एक वार होगई ।
अब एक ऐसे बेलनकी कल्पना कीजिये जिसका व्यास उस समुद्रकी सीमापर्यन्त व्यासके बराबर हो जिसमें वह अन्तिम सरसोंका बीज डाला हो। इस बेलनको अ, कहिये । अब इस अ, को भी पूर्वोक्त प्रकार सरसोंसे शिखायुक्त भर देनेकी कल्पना कीजिये । फिर इन बीजोंको भी पूर्व प्राप्त अन्तिम समुद्रवलयसे आगेके द्वीप-समुद्ररूप वलयोंमें पूर्वोक्त प्रकारसे क्रमशः एक एक बीज डालिये । इस द्वितीय वार विरलन में भी अन्तिम सरसप किसी समुद्रवलय पर ही पड़ेगा । अब ब, में एक और सरसप डाल दो, यह बतलानेके लिये कि उक्त प्रक्रिया द्वितीय वार हो चुकी ।
अब फिर एक ऐसे बेलनकी कल्पना कीजिये जिसका व्यास उसी अन्तिम प्राप्त समुद्रवलयके व्यासके बराबर हो तथा जो एक हजार योजन गहरा हो । इस बेलनको अ३ कहिये । अ, को भी सरसपोंसे शिखायुक्त भर देना चाहिये और फिर उन बीजोंको आगेके द्वीपसमुद्रोंमें पूर्वोक्त प्रकारसे एक एक डालना चाहिये । अन्तमें एक और सरसप ब, में डाल देना चाहिये।
कल्पना कीजिये कि यही प्रक्रिया तब तक चालू रखी गई जब तक कि ब, शिखायुक्त न भर जाय । इस प्रक्रियामें हमें उत्तरोत्तर बढ़ते हुए आकारके बेलन लेना पडेंगे
अ., अ.,...........अर,........ मान लीजिये कि ब, के शिखायुक्त भरने पर अन्तिम बेलन अ' प्राप्त हुआ।
अब अ' को प्रथम शिखायुक्त भरा गड्ढा मान कर उस जलवलयके बादसे जिसमें पिछली क्रियाके अनुसार अन्तिम बीज डाला गया था, प्रारम्भ करके प्रत्येक जल और स्थलके वलयमें एक एक बीज छोड़ने की क्रियाको आगे बढ़ाइये । तब स, में एक बीज छोड़िये । इस प्रक्रियाको तब तक चालू रखिये जब तक कि स, शिखायुक्त न भर जाय । मान लीजिये कि इस प्रक्रियासे हमें अन्तिम बेलन अ" प्राप्त हुआ। तब फिर इस अ" से वही प्रक्रिया प्रारम्भ कर दीजिये और उसे ड, के शिखायुक्त भर जाने तक चालू रखिये । मान लीजिये कि इस प्रक्रियाके अन्तमें हमें अ" प्राप्त हुआ। अतएव जघन्यपरीतासंख्यात
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org