Book Title: Setubandhmahakavyam Author(s): Pravarsen, Ramnath Tripathi Shastri Publisher: Krishnadas Academy VaranasiPage 15
________________ [ १४ ] सामने विशाल एवं दुर्लङ्घय समुद्र को देख कर हतोत्साह एवं निराश वानरों के प्रति कवि ने पूरे तृतीय आश्वास भर में सुग्रीव के मुख से जो वचन कहलवाये हैं उनसे इस संसार के संकटग्रस्त मानवमात्र के हृदय में निःसन्देह उत्साह एवम् आशा का संचार हुये विना नहीं रह सकता और तदनुकूल आचरण कर मनुष्य जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है । 'न कान्तमपि निर्भूषं विभाति वनिताननम् ।' भामह की इस सूक्ति के अनुसार प्रस्तुत महाकाव्य में श्लेष, यमक, विरोधाभास, उत्प्रेक्षा, उपमा, रूपक, विशेषोक्ति अर्थान्तरन्यास, दृष्टान्त, निदर्शना आदि सर्वथा उपादेय अलङ्कारों की भी यथास्थान समुचित योजना की गयी है कवि को उपमा, रूपक तथा उत्प्रेक्षा अलङ्कार अत्यन्त प्रिय हैं । ग्रन्य में सर्वत्र इन तीनों अलंकारों के प्रयोग का कौशल दर्शनीय एवं प्रशंसनीय है । इन्हीं ( उपर्युक्त ) विशेषताओं के आधार पर विद्वानों इन महाकाव्य को उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया है । 1 Jain Education International रमाकान्त त्रिपाठी स्वामी देवानन्द डिग्री कालेज, म० लार - देवरिया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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