________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४८
उत्सुत्रतिरस्कारनामा-विचारपट:
वा आउडिज्जमाणस्स वा हम्ममाणस्स वा तजिज्जमाणस्स वा ताडिज्जमाणस्स वा परियाविजमाणस्स वा किलिज्जमाणस्स वा उद्दविजमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमदि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेएमि, इच्छेवं जाण सव्वे पाणा सव्वे भया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता दंडेण वा जाव कवालेण वा.. आउडिजमाणा वा हम्ममाणा वा तज्जिजमाणा वा ताडिजमाणा वा परियाविजमाणा वा किलामिज्जमाणा वा उद्दविज्जमाणा वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति ॥" श्रीभगवंत तीर्थकरे सर्व जीवनई आत्मसमान दुक्ख काउं। परं किहांई किणिही अर्थिं दुःख न ऊपजइ अनइ एहनी विराधना दोष नथी, इम न काउं ॥ तथा
श्रीदशवकालिके-"पुढवीचित्तमंत्तमक्खाया अणेग जीवा पुढोसत्ता अन्नथ्य सथ्यपरिणएणं । आऊचित्तमंतमक्खाया अणेग० ॥२॥ तेऊ चित्तमंतमक्खाया अणेग जीवा०॥३॥ वाऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा० ॥४॥ वणस्सई चित्तमंतमक्खाया, अणेगजीवा० ॥ ५॥” इत्यादि स्थावर ५ मांहि वनस्पति विना अनेरामांहि असंख्याता जीव बोल्या ।।
गाथा-" एगस्स दुन्ह तिन्ह व, संखिजाणं न पासिउं सका। दीसंति सरीराई, पुढविजिआणं असंखिज्जा ॥१॥ एगंमि दगबिदुमि० " इत्यादि वनस्पति माहि संख्याता असंख्याता अनंता पुण लाभइ । साधारण वनस्पति अनंतकाय
For Private And Personal Use Only