Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२१६
श्रीसप्तपदीशाख-गुजरातीभाषानुषाद.
धन्य छ, हुं तेओने नमस्कार करुं छु. १४२. चौदपूर्वी थइने निद्राना दोषे करी घणा भव हुं भम्यो, एम भुवनभान्ए सभामां पूर्वभवना निज चरित्रने कहेता कहेल छे. १४३. कयु छ के-"जो चौद पूर्वधर निद्रादि प्रमादे करी निगोदमां अनन्तकाळ वसे, तो हे जीव ! तारुं शुं थशे ?" आवां वचन होवाथी. वळी दिवसमां चिन्तवेल कार्यने करवावाळी ' थीद्धिया' निद्रा जेने होय, ते दुर्गतिमां जाय छे, माटे अहो ! निद्रा प्रमाद महा शत्रु छे. १४४. निद्रा प्रमाद दोषे करी साधुए हाथीना दान्त उखेडी नाख्या, आ दृष्टान्त घणा शास्त्रोमां संभळाय छे. १४५. आवा कारणे जिनेश्वरना उपदेशमा निद्राकरणना आदेश न होय, पण तेज निद्रानुं त्याग विधिपूर्वक जिनेश्वरोए बतावेल छे, १४६. निद्रा त्याग करी, उठीने इरियावहियं पडिकमिने रात्रि प्रायश्चित्त विशोधनार्थ-कुसुमिण दुसुमिण उड्डावणार्थ काउस्सग्ग करे, शो शासोश्वास प्रमाण-अने कारण होय तो एक नवकार-आठ शासोश्वास अधिक चार लोगसनो करे, पछी शकस्तव भणीने वैरात्रिक काळने ग्रहण करे. विधिपूर्वक सज्झायने पठावीने पछी संवेगने पामेलो असंयति-अविरतियो जेम न जागे तेम सज्झायने करे. १४७ थी १४९. बे घडी अवशेष रात्रि बाकी रहे त्यारे मुनि प्राभातिक काळ ग्रहण करे. पछी त्रण थोम वंदनाए आचार्योंदिकने वांदीने. १५०. पछी चोथे खमासमणे राइ प्रतिक्रमणने ठावे. हवे सूत्र, नियुक्ति, वृत्तियोमां, तथा
For Private And Personal Use Only
Page Navigation
1 ... 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291