Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
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२३६ श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुवाद जाणवु २२३. अहिं गीतार्थो मध्यस्थो सूत्रानुसारे दृष्टिराग रहितपणे महेरबानी धारणकरीने जे कहे तेज प्रमाण कर. अथवा अहिं मध्यस्थ गीतार्थो जे कहे, तेज प्रमाण करवू. माटे सूत्रानुसारे दृष्टिराग रहितपणे कृपाकरी बोलवू जोइए. अथ उपधाननो आधिकार लखिये छीए-१.अंगप्रविष्टश्रत अने अंगबाहयश्रुत. तथा वळी आवश्यकश्रुत अने आवश्यक व्यतिरिक्तश्रुत, तेमज कालिकश्रुत अने उत्कालिकश्रुत. २२४. श्रीठाणांगसूत्रमा तथा श्रीनंदीसूत्रमा तेमज श्रीअनुयोगद्वारसूत्रमा सूत्रना उपर बताव्या ते छभेद श्रीजिनेश्वरोए कया छे. एथी अधिक, ए विना बीजा कोइ पण सूत्र जणाता नथी. २२५. हं पुच्छं छं के पंचमंगलनामे जे महाश्रतस्कंध, जेना पांचअध्ययन अने एक चूला छे, ते जो होय तो ते कोइ जगाए होवा जोइए पण ते कोइ जगाए प्राप्त थता नथी. २२६. वळी प्रतिक्रमण श्रुतस्कंध अने शक्रस्तव नामे बीजो श्रुतस्कंध, त्रीजो अरिहंतचैत्य अध्ययन, चोथो स्तवअध्ययन, पांचमुं नामस्तव अध्ययन अने छठं श्रुतस्तव अध्ययन, एम चार अध्ययन अने बे श्रुतस्कंध. २२७. २२८. द्वादशांग गणिपिटक-आचार्यश्रीनो खजानो बारअंग कहेल छे, तेमां कइ जगाए उपरनी वस्तु बतावेल छे, ते गीतार्थो कृपाकरी मने बनावे. तो हे भगवन् ! हुँ तेनुं सुखेथी स्वीकार करु. २२९. माटे सर्वमनोगत कषायनो त्यागकरी मारापर कृपाकरो, कारणके उत्तमपुरुषो नमनार उपर वात्सल्यभाव धारणकर
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