Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 276
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुवाद. करे. तेज मुनि पोते आशातना नहीं करनार, बीजाओपासे नहीं करावनार अने आशातना करता होय तेने पण सारु नहीं जाणनार होय छे, मतलब के प्राण, भूत, जीव अने सच्चोने पीडा न उत्पन्न थाय एवीरीते धर्मने कहे, ते अनाशातक मुनि पीडापामता प्राण, भूत, जीव अने सत्व तेओनी आशातना नहीं करनार जेम 'असंदीण' नामनो द्वीप जीवोने शरण थाय छे तेम ते पण महामुनि शरण थाय छे' तथा वळी श्रीआचारांगसूत्रना सातमा अध्ययनना पहेला उद्देशामां जणावेल छ के-" अहिं मनुष्यलोकमा केटलाक अशुभ कर्मना उदयवाळाने मोक्षसंबंधीक्रिया सारीरीते जाणवामां आवेल न होवाथी ते आलोकमां आरंभी बने छे अने आरंभ जेमा रहेल छे एवा धर्मने कहेनारा तथा कहेवरावनारा बने छे, आ प्राणीओने हणो एम बीजाओनी पासे हणावता अने हणताने सारं जाणता एवा होय छे." तेमज वळी श्रीआचारांगसूत्रना बीजा श्रुतस्कंधना चोथा अध्ययननेविषे कहेलछे के:-"हवे चार प्रकारनी भाषाओ छे, तेमां न बोलवा योग्य भाषाने न बोले ते साधु जाणवा. चारभाषानां नाम-सत्यभाषा, असत्यभाषा, सत्यमृषा अने असत्यामृषा. आ चारभाषामांथी असत्यभाषा तथा सत्यमृषाभाषा साधुने ए बे भाषा बोलवानी नथी. सत्यभाषा पण आवी होय ते न बोलाय, ते जणावे छे-पापकारी होय, अनर्थदंडवाळी होय, ओछा अक्षरवाळी होय, चित्तने उद्वेग करनारी होय, निष्ठुर-हाकोटावाळी होय, For Private And Personal Use Only

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