________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२५४
श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुवाद.
ते आ-तेमनो उपदेश पापने वधारनार जीवोने नाशकरनार क्ररकर्मीजीवो अनार्यलोकोर्नु ए उपदेशवचन छे. तेमा जे आर्यजीवो छे ते तो एम बोले छे, जे हमणां का ते सारं जोवाएल नथी, तमाराथी के तमारा देवोथी, तमारा गुरुओ के तमारा देवो पासेथी तमोए सारं सांभल्यु नथी, तमारो के तमारा देवोनो ए अभिप्राय सारो नथी, तमारो के तमारा देवोनु विशेष जाणपणुं सारं नथी, सर्वप्रकारे विचार्या विनानु छे वळी तमो जे आम कहोछो, भाषण करोछो, परूपणा करोछो के सर्व प्राण भूत, जीव अने सत्वोने हणवा, मारवा विगेरेमा दोष नथी अने यज्ञादिक-माणिओना नाशकारक अनुष्टानमां पाप-दोष नथी एवा तमारा वचन धर्मविरुद्ध अनार्य सरखां वचन छे. अमे तो वळी जेम धर्मविरुद्धवाद न थाय तेम कहिए छोए. भाषण करीए छीए, परूपणा करीए छीए के सर्वप्राण, भृत जीव अने सच्चोने हणवा नहीं, पोडवा नहीं, परिताप उपन्न करवो नहीं विगेरे, एम एवो उपदेश करीए छीए, तेथी अहिं दोष नथी, अने ते आर्यवचन छे." वळी श्रीसूत्रकृतांगसूत्रना सातमा अध्ययननेविषे जणावेल छे के:-"वनस्पतिकायनी उत्पत्तिने अथवा तेनी वृद्धिने अथवा बोज-फलने विनाश करता हरितकायने जे छेदन करेछे ते कर्मने करनार गृहस्थ होय के दीक्षित होय पण ते खरेखर परमाथंथी विचार करवामां आवे तो तेओ परोपघात करता पोताना आत्मानेज दंडेछे, आलोकमां हरितकायने छेदनकरनार
For Private And Personal Use Only