Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 278
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुवाद माफक सत् असत् विवेकथी रहित होवाथी, बोले कंइ अने करे कंइ, पोते अज्ञानथी घेराएला तेथी बोजाओने पण अज्ञानी बनावनारा एवा छतापण पोताना आत्माने पंडित माननारा तेओ छे. धनधान्य-स्वजनादि-संयोगने छोडीने अमे प्रबजित थया छीए एम गृहस्थपणामांथी निकळीने फेर परिग्रह आरंभमां आसक्त थएला गृहस्थोनी जेम पचन-पाचन, खांडवु, पीस, विगेरे पापकारी व्यापारना उपदेशने करनारा तेओ थाय छे, अने पांचसूनाना व्यापारवाळा गृहस्थनी जेम पोते प्रवृत्ति करनारा थाय छे. १ वळी १ सत्य, २ असत्य, ३ सत्यमृषा, अने ४ असत्यामृषा आ चारप्रकारनी भाषामध्ये त्रीजी सत्यमृषा के जेमां कंइक सत्य छे अने कंडक असत्य छे, जेम कोइ नगरमां 'दश छोकरा जन्म्या अथवा मूआ' एम बोल्ये छते न्यूनाधिक थएछते संख्यामा फेरफार थवाथी सत्यमृपापणुं थवाथी जीव भवान्तरमा तेवा दोषथी उत्पन्न थएला कर्मकरी पीडा पामेछ, अथवा आज भवमा पश्चात्ताप करनार थायछे. ज्यारे मिश्रभाषा दोषभणी थायछे तो बीजी असत्यभाषानुं तो कहेवून शुं ? तेमज पहेली सत्यभाषा पण जे प्राणीओने दुःख उत्पन्न करे एवा दोषवाळी ते पण न बोलवी, चोथी असत्यामृषाभाषा जे ज्ञानी ओए न बोलवानी कहेलोछे ते पण न बोलवी. सत्यवाणी पण जे हिंसावाळी होय जेम 'आ चौर छे माटे एने मारो 'आ क्यारामांथी घास काहीनाखो' 'आ बळद जोडवा For Private And Personal Use Only

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