Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
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eetर्यश्री भ्रातृचंद्रसूरि प्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं. २६३
अनुसारे होय ते ते मने प्रमाणछे. २८० थी २८३ । जे कांह प्रवचन - सूत्रसिद्धान्तथी विरुद्ध आ शास्त्र लखतां में लख्युं होय, तेनुं श्रीसंघसमक्ष हुं 'मिच्छामिदुक्कडं' आपुंछु ते दुष्कृत मारुं मिथ्या थाओ. २८४ । विक्रम संवत् १५९१ ना वर्षे कार्तिक पूर्णिमाना दिवसे पार्श्व चंद्रे - श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिए आ समाचारी संबंधी सप्तपदीशास्त्र लख्युं छे. २८५ । श्री सिद्धान्तमार्गना प्रेमी अने अत्यन्तश्रेष्ट वैरागी एवा साधु, साध्वी, श्रावक अने सुश्राविकाओने आ शास्त्र योग्य छे २८६ । श्रीजिनवर कथित सिद्धान्तरुप श्रेष्ट मानससरोवरमा रमणताकरनार राजहंससरखा एवा जे शुद्ध पवित्र धर्मनी सद्दहणा करेछे अने अनादिकाळी सिद्ध तथा सिद्धिने आपनार एवा धर्मनी मरूपणा करेछे, ते भाग्यशाळीओने मारो नमस्कार थाओ. २८७ | इति विश्वबंध श्रीमहावीरस्थामिशासननायक श्री गौतमस्वामी, सुधर्मस्वामिप्रमुख सुविहितपरंपरायात - श्रीनागपुरीय बृहत्तपागच्छनभोमणि श्रीजिनागम मार्गप्रकाशक- शासनप्रभाas सदूधर्म रक्षक - पंचाचार पालक-क्रियोद्धारकारकआत्मज्ञानरसिक-धर्मधुरंधरधोरी-स्वपरोपकारीआबालब्रह्मचारी उग्रविहारी- घोरतपस्वी पर
मपुरुष जगतपूज्य - युगप्रधान श्रीमत्पार्श्व चंद्रसूरीश्वरदादाविरचित 'सप्तपदीशास्त्र' नो गुजराती अनुवाद संपूर्ण । आ शास्त्र श्रमण संघनं अखंड कल्याण करनार अने शाश्वती. लक्ष्मी आपनार थाओ ।
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