Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 281
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यश्री भ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं. २५५ अनार्यधर्मी कहेल छे. बीज विगेरे वनस्पतिकायनी हिंसा करेले ते अनार्य जाणवा. ९ " वळी श्रीसूत्रकृतांगसूचना अग्यारमा अध्ययननेविषे जणावेलले के:- "धर्मश्रद्धावाळाओना गाम - नगरोनेविषे रहेवाना स्थानो होय छे. ते स्थानने आश्रय करनार कोइ धर्मोपदेशथी के धर्मनी श्रद्धाथी अथवा धर्मबुद्धिथी कूवा तलाव खोदावा विगेरेनी क्रिया करनार एम पूछे के आ करवामां धर्म छे के नथी ? एवीरीते पूछाएछते, तेना आग्रहथी के भयथी प्राणीओना नाशने सारुं जाणे नहीं, केवो थयोथको साधु मन, वचन अने कायाएकरी गुप्त अने पोताना आत्मानी रक्षा करनार तथा जितेन्द्रिय सावद्य अनुटानने सारुं माने नहीं. १६ कोइ राजा विगेरे पूछे के कुत्रा खोदावा विगेरेमां पुण्य छे के नथी ? एवी वाणी सांभळीने साधु पुण्य छे एम न बोले, तेमज पुण्य नथी एम पण न बोले बन्ने प्रकारे महाभय समजीने, दोषना हेतुपणाने लड़ने तेनुं अनुमोदन न करे, मौन रहे. १७ शा माटे 'पुण्यछे' एम न बोले ? ते बतावे छे - अन्नपाणी आपवामाटे आहार अने पाणी छे, आहार पचन पाचनादि क्रियाथी अने पाणी कूत्रा विगेरे खोदवायी प्राप्त थाय छे, ते क्रियामां त्रस - स्थावरजीवो हणाय छे, तेथी तेओनी रक्षाना माटे तथा साधु पोताना आत्मानी रक्षाना कारणे जितेन्द्रिय एवो तमारा अनुष्टानमां 'पुण्यछे' एम न कहे. १८ जो एम होय तो 'पुण्य' नथी एम कहे, तेम पण न बोले, ते जणावे के जे जीवोने माटे तेवं अन्न For Private And Personal Use Only

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