Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 264
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ श्रीसप्तपदोशाख-गुजरातीभाषानुवाद. छेक्टसुधी दरेकक्षणे वधती भावनाना प्रयत्नवाळा, तथा ते आवश्यकक्रियाना दरेक सूत्रोना अर्थमां उपयोगवाला अने तेनेलइ अत्यन्त वखाणवायोग्य संवेगगुणथी विशुद्धि पामनारा, ते आवश्यककरवामां यथास्थाने स्थापेलाछे देह, रजोहरण, मुखवस्त्रिका वगेरे जेमणे एवा, तथा आवश्यकनी क्रियावडे भावित करेलछे आत्मा जेमणे एवा, बीजी कोई जगाए मन, वचन अने कायाने नकरता-न प्रवर्तावता बन्ने काळ जेओ आवश्यकने करेछे, ते लोकोत्तरभावावश्यक कहेवायछे." आई मूत्रवचन होबाथी साधु, साध्वी श्रावक अने श्राविकाओने आवश्यक कर्तव्य करवाने उपदेश करेल छे. ते आवश्यकन करवू सूत्रपाठविना कोइरीते थइशकतुं नथी. ते सूत्रपाठ गुरुकृपाथी प्राप्तथाय एम अनुयोगद्वार सूत्रमा प्रसिद्ध छे. ते सूत्रवाचना समुद्देशविना संगत थाय नही, अने समुद्देश उद्देशपूर्वकहोय एम श्रीअनुयोगद्वारसूत्रमा देखाय छे. ते आप्रकारे:-"ज्ञान पांच प्रकारना कह्या छे तेआ, नतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनपर्यवज्ञान अने केवलज्ञान, तेना चारज्ञान थापवा योग्यछे, तेओने स्थापोने कारणके तेओना उद्देश, समुद्देश अने अनुज्ञा होतो नथी, परंतु श्रुतज्ञानना उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा अने अनुयोग प्रवते छे. ते शुं अंगप्रविष्ट श्रुतज्ञानना ? उद्देश. समुद्देश, अनुज्ञा अने अनुयोग प्रवर्ने छ ? के अंगबाहिरसूत्रना उद्देश, समुइंश अनुज्ञा अने अनुयोग प्रवत छ ? अंगप्रविष्टसूत्रना For Private And Personal Use Only

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