Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
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आचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं २४७ निकायनो आरंभ करे नही, बीजा पासे करावे नही अने करता होय तेने सारं जाणे नही. जेने ए छजीवनिकायशास्त्र समारंभो सारीरीते जाणवामां होय छे, ते खरेखर 'ज्ञपरिज्ञा' वडे जाणीने अने 'प्रत्याख्यानपरिज्ञा' वडे तेओनो त्याग करनार मुनि जाणवो. ते सर्वथा पापकर्मोथी विराम पामेलो होय छे. एम श्रीसुधर्मस्वामी पोताना शिष्य श्रीजंबूने कहे छे के जेम श्रीवीरपरमात्माए कयु तेम हुं कहुंछं." वळी श्री आचारांगसूत्रना बीजा अध्ययनना बीजा उद्देशाने विषे कहेल छे के:-"आत्मानुं बल-शक्ति ते मने थाओं एम धारीने अनेक भकारना उपायोवडे आत्मपुष्टिनामाटे आलोक तथा परलोकनाहितने नाशकरनारी तेवीतेची क्रियाओ करेछे, पंचेंद्रिय विगेरे जीवोना घातमा प्रवृत्ति करे छ. स्वजननुं बल मने प्राप्त थशे तेना माटे. वळी मने मित्रबलनी प्राप्ति थशे, जेथी आपदा
ओने हुं सुखेथी दूर करी शकीश. वळी भविष्यमां बलनो मने प्राप्ति थशे अथवा मने देवशक्ति प्राप्त थशे ए हेतुए तेवा प्रकारनी क्रियाओ करे अथवा मने राजबल प्राप्त थशे माटे राजानी सेवा करे अथवा चोरोना गाममां वसे, चोरोनी साथे संबंध राखे के जेथी मने चोरीथी आवेल द्रव्यनो भाग मलशे. अतिथि एटले निस्पृह पुरुषोनुं बल मने थशे एम धारीने तेओनी सेवा करे. एवीरीते कृपणनी तथा श्रमणनी सेवा करे आत्मबलनेमाटे अनेक जीवोनी हिंसा-आरंभने आदरे. एम पूर्वोक्त अनेक प्रकारना कार्य-प्रयोजनने लइने
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