Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
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आचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसूरि प्रन्थमाळा पुस्तक ५३ मुं २४३ पृथ्वी विगेरे ए पाणीओने हुं जाते नाश करूं नहीं, बीजानी पासे नाश करावू नहीं, कोइ प्राणीओने नाश करतो होय तेने हुं सारं जाणुं नहीं. जावजीव सुधी त्रिविधे त्रिविधे" इत्यादि. एज प्रमाणे श्रीआचारांगसूत्रमा पण बतावेल छे. वळो श्रीदशवकालिक सूत्रना आठमा अध्ययनमा जणावेल छे केः- "पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु अने वनस्पति ए पांच एकेन्द्रियकाय अने त्रसपाणी बेइन्द्रियादिक ए जीवो छे, एम श्रीमहावीरप्रभुए कहेल छे. २. माटे पृथ्वीविगेरे जीवोनो नाश न थाय एका मन, वचन अने कायाए अहिंसक व्यापारवाळा साधुओए थq जोइए, एम दर्ते ते संयत कहेवाय. ते सिवाय नही. ३" वळी श्रीपाक्षिकसूत्रमा कहेल छ के-"ते प्राणातिपात चार प्रकारचें कहेल . द्रव्यथी, क्षेत्रथी, काळथी अने भावथी. द्रव्यथी प्राणातिपात छजीवनिकायनेविषे, क्षेत्रथी प्राणातिपात सर्वलोकनेविषे, काळथी प्राणारिपात दिवसमा अथवा रात्रिमा अने भावथी प्राणातिपात रागे करी अने द्वेषे करी" इत्यादि. एम मूत्रवचन होदाथी. तथा श्री उत्तराध्ययनसूत्रना आठमा अध्ययनने विषे कहेल छे के:"लोकमा रहेला जीवो वस अने स्थावर, तेओनो नाश न करे मन, वचन अने कायाए करी निश्चेथी, तेमज नाश न करावे अने नाश करताने भलं न जाणे. १" तथा बळी एज सूत्रना चोवीसमा अध्ययनमां कहेल छे के:-"संरंभ-बीजाने नाश करवामां समर्थसंकल्पने सूचनकरनार शब्द-वचन ते, समा
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