Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
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२४२
श्रीसप्तपदीशास्त्र - गुजराती भाषानुवाद.
अहिंसा लक्षणवाळो धर्म श्रीजिनेश्वरदेवोए व्यवहार- निश्चयथी अने उत्सर्ग - अपवादथी कहेल छे. २४७. विधिवाद उपदेशमां सावध पाप न होय एम आगममां कहेलछे अने अपवादमां विधि न होय, ए यथास्थित उपदेश जाणवो. २४८. उत्सर्गमार्गमां विधि छे एम अतीतकाळना अनन्ता श्रीजिनवर - देवोए कां, भविष्यकाळना अनन्ता कहेशे अने वर्तमानकाळमां विचरता संख्याता श्रीजिनेश्वरदेवो कहे छे, २४९. भूत अने भविष्यकाळना अनन्ता अने वर्तमानकाळमां विचरता संख्याता जिनेश्वरोनो उपदेशविधि तेनी वानगी लखिए छीए. श्री आवश्यकसूत्रमां जणावेलछे के:-" हे भगवन् ! सामायिक करूं छु, सर्वपापकारीव्यापारनो त्याग करूं छु, जावजीव सुधी त्रिविधे त्रिविधे मन, वचन अने कायाए हुँ न करूं, न करावें अने बीजा करता होय तेने हुं सारुं न जाणुं, तेमां जे कांइ दोष लागे तेनाथी हेभगवन् ! हूं पाछो इछु, पोताना दोषनी निन्दा करुहुँ, श्रीगुरुनी साक्षीए गर्दा करुछु अने पापकारी मननो त्याग करुछु. " तथा श्रीदशवैकालिकसूत्रमा चोथा अध्ययनमां कल छे के: - " हे भगवन् ! पहेला महाव्रतम जीवोना प्राणनो नाश तेथी विराम पामवु हेभगवन ! सर्व प्राणातिपातने हुं पञ्चखु छु, ते सूक्ष्म अने बादर, ते अकेक प्रकारे छे अने स्थावर, सूक्ष्म त्रस कुंथुंआ विगेरे, सूक्ष्म स्थावर वनस्पति विगेरे, बादर त्रस गाय विगेरे, बादर स्थावर
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