Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आचार्यश्री भ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाळा पुस्तक ५३ मुं २४१ दिवसनी उपधानक्रियाने प्रथम चारित्रिया 'सामायिक चारित्र' नानी दीक्षाने धारणकरनारा सर्वमुनिओने श्री आवश्यकसूत्रना योगनी क्रिया करवी, ते सर्वगच्छवासीओ सुप्रमाण मानेछे, २४४. श्रीआवश्यकमृत्रनो उपधानविधि बीजो कोइपण देखातो नथी, जेथी आचार्यों तो सदा निरतिचार शिक्षाने करे छे. २४५. कह्यु छे के:-" काळे भणवू, विनयपूर्वक भण, बहुमानपूर्वक भणवं, उपधानवहीने भणवू, जेनी पासे भणीए तेने ओलवq नहीं, शुद्ध अक्षर, शुद्ध अर्थ अने बन्ने शुद्धशीखवा ए आठ प्रकारनो ज्ञानाचार छे" आयु वचन होवाथी. श्रावकोने पण उपधानक्रिया विना आवश्यकसूत्रनु भणवं. तेथी ज्ञानाचारना अतिचार लागे. वळी प्रतिक्रमणसूत्रमा श्रावकना अधिकार कहेल छे के-"बे प्रकारनां वंदन, बार प्रकारनां व्रत. बे प्रकारनी (ग्रहण अने आसेवनारुप ) शिक्षा, त्रण गारव, चार संज्ञा चार कषाय, त्रण दंड, त्रण गुप्ति, पांच समिति अने 'च' शब्दे श्रावकनी अगियारपडिमा तेनेविषे जे अतिचार लाग्यो होय तेने हुं निदुछु." आईं वचन होवाथी. जो श्रावकोने उपधानविना श्रीआवश्यकसूत्रनुं अध्ययन-भणवू गीतार्थों स्वीकारता होय अथवा उपधानविधिए करी शुद्ध आवश्यकसूत्रनी क्रियाने स्वीकारता होय तो तेम प्रमाण करोए. हवे मुनिओने उपदेशनो विधि बतावेछ।-पूर्व, पश्चिम, दक्षिण अने उत्तर विचरता शुद्धमुनि शुद्धधर्मनो उपदेश करे २४६.
For Private And Personal Use Only
Page Navigation
1 ... 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291