Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
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आचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं २३७
नाराहोयछे. २३०. उपर जणान्या एओना उपधान श्रीमहानिशीथसूत्रमा श्रावकोने उद्देशीने जे कहाछे, ते कारणे श्रावकोने विना उपधाने आवश्यकमूत्रनु भणवू पण नकल्पे. २३१. तो पछी आवश्यकना उपधान वह्या नहोय तेओने निश्चेथी आवश्यकनी क्रियाकरवानुं शुं को ? विना उपधाने आवश्यकनी क्रियाकरनारने ज्ञानाचारनी विराधना प्राप्तथाय छे. २३२. अने विपरीत सद्दहणाए सद्दहणा करनारने दर्शनाचारनी विराधना थायछे, तेमज निषिता रहित सदोषक्रिया करनार चारित्राचारनी विराधना करेछे. २३३. आवा कारणे आवश्यकसूत्रना शुद्धउपधान जे करवा योग्य, ते साधु तथा श्रावकोए अवश्य करवा जोइए. २३४, कारणके श्रीअनुयोगद्वारसूत्रमा कलछे के:-साधु तथा श्रावके दिवस-रात्रिना मध्यमांजे कारणे अवश्यकराय ते कारणे एनुं नाम आवश्यक कहेवाय छे.” तथा वळी एज सूत्रमा जणावेल छ के-"जे आ प्रतिक्रमणआवश्यकने साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविका बन्ने वखत सांज-सवारे करेछे. ते लोकोत्तर भावावश्यक कहेचायछे, केवा थया थका करे, ते बतावे छे:-ते आवश्यकक्रियामा चित्तना उपयोगवाळा, ते आवश्यकक्रियामां मननाविशेष उपयोगवाला, ते आवश्यकनीक्रियामां शुभपरिणामरुप लेश्यावाळा, तथा ते आवश्यकनीक्रिया सारीरीते करवामां तच्चित्वादि अध्यवसाय-भावनावाळा.तथा ते आवश्यकक्रियामां तीव्रभावनावाला एटले आवश्यक क्रियानी शुरुआतथीलइ
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