Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 244
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुवाद. शुं तप करूं ? श्रमण भगवान् श्रीमहावीरस्वामीए छमासी तप कयु हे जीव ! तुं करी शके ? न शकुं, एम एक एक दिवस उणुं करतां करतां जाव पोरसी अथवा नवकारसी सुधी चिंतवे. ३" वळी श्रीहरिभद्रसरिकृत पंचवस्तुक ग्रन्थमां जणावेल छे के:-" प्रादोषिकादि सर्व-कालग्रहण अने स्वाध्यायादि ते विशेष सूत्रथी अहिं जाणी लेवू. हवे हुँ राइप्रतिक्रमण अनुक्रमे कहीश. १. सामायिक लइ पहेलाज इहां चारित्राचार विशुद्धि माटे पचीस शासवास प्रमाण धोर पुरुषो काउस्सग्ग करे. २. विधिपूर्वक 'नमो अरिहंताणं' कहीने शुद्ध चारित्रिया 'लोगस्स उज्जोअगरे' बोलीने दर्शनशुद्धि निमित्ते एक लोगस्सनो काउस्सग्ग 'चंदेसु निम्मलयरा' मुधी करे. ३. पछी विधिपूर्वक 'नमो अरिहंतागं' कहीने 'पुख्खरवरदीव ०. श्रुतस्तव बोलीने त्यार पछी उपयोग वाळा थया थका अतिचार चिन्तवनरूप काउस्सग्ग करे. ४. हवे जे चितवन करे, ते बतावे छे:-सांझना प्रतिक्रमणना अनन्तर स्तुतिथी लइने आ चालता काउस्सग्ग व्यापार पर्यन्त रात्रि संबन्धी सर्व अतिचारोने रुडी रीते चिन्तवे. ५. त्रीजा काउस्सग्गमां रात्रिना अतिचारो चिन्तवीने विधिपूर्वक 'सिद्धाण बुद्धाणं' कहीने विधिपूर्वक प्रतिक्रमण करे. ६. सामायिकनुं बहुधा करण, ते पूर्वक श्रमणना व्यापार छ; अने आ स्मरण कराववामां प्राये ते कारणभूत छे. ७. पछी गुरुने खमावीने सामायिक उच्चारपूर्वक काउस्सग्गने करे, तेमां आवं चिन्तवन करे, गुरुए For Private And Personal Use Only

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