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आवार्यश्रीभ्रातृचंद्रगि ग्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं २२७
कारण माटे पूर्णिमां चोमासीनीतिथी कहेल छे, तेमां कोई प्रकारे पण पख्खि थाय नही. १८८. हवे परिक्य चौदशना दिवसे थाय, तेमां पहेला देवसिय थाय, एम योगशास्त्रना अर्थमां श्रीहेमचंद्रसूरीश्वरे कहेल छे. १८९. जे कारण माटे पूर्वाचार्योए कहेल छे के:-" बोजी पण वृत्तियोमा तेमज चूर्णियोमा अने बळी श्रीअभयदेवरि प्रमुखोए उद्दिष्टा शब्दे अमावास्या निर्देश करेल छे. १. एम उद्दिष्टानो अर्थ अमावास्या जो मानीए तो श्रीजैनशासनमा सुपसिद्ध कल्याणक तिथीओ प्राप्त थइ शके नहि, अने ज्यारे सूत्र के अर्थमा कहेल न होय तो ते केवी रीते आराधि शकाय ? २. बीजी क्रियाओमां नाग विगेरेनी पूजा, समुदना जलनी वृद्धि अने शैलक यक्षना उपचारमा त्या उद्दिष्टानो अर्थ अमावस्या जाणवो. ३. एम उद्दिष्टापदे करी प्रवचन-सिद्धान्तमां अमावास्या कहेल छे, ज्यां शेष लोकस्थिति एम विशेष जणावेल होय. ४. त्यां विवेक करको जोइए, पर तीर्थीओन के स्वतीर्थीओन आराधन छे. धर्मक्रियामां कल्याणिकतिथीओने मूकी जिनमतनो जाणकार बोजो अर्थ केम ग्रहण करे. ५." ए कारणे स्वतीर्थे उद्दिष्टा शब्दे कल्याणिक तिथी जाणवी अने जगत्स्वरुपे उद्दिष्टा शब्दे अमावास्या जाणवी. पळो संदेह विषौषधीमां जिनवल्लभमूरिए पण का छे केः-चोमासी प्रतिक्रमण पख्खियदिवसमां चतुर्विधसंघे (११ १९०. निश्वेथी पक्षनी आठम अने मासनी पशिखय जाणवी, अने त्यां
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