Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 257
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री भ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाळा पुस्तक ५३ मुं. २३१ जेथी एओने जूदी केवाय छे. गुरु उत्तर आपे छे-अहिं सूर्ये निष्पादन करेल एटले सूर्यथी निष्पादन थएला अहोरात्र छे अने चंद्रथी निष्पादन थएल तिथीओ छे. तथा वळी आ पूर्वाचार्यांनी परंपराथी आवेल रहस्यभूत उपदेश के. बास भागे प्रविभक्त थल अहोरात्राना जे एकसठ भागो तेला प्रमाणवाळी तिथो जाणवी. अने त्रीस मुहूर्त्त प्रमाण अहोरात्र ते तो सुप्रसिद्ध छे. वळी श्रीभगवती सूत्रानां बारमा aasti छट्टा उद्देशमां आम कहेल छे: " हे भगवन ! शा प्रयोजने एम कहेवाय छे के सूर्य आदित्य छे ? हे ! गौतम सूर्य जेनी आदिमां के एवा समयादि अथवा आवलिकादि अथवा यावत् उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी काल छे, ते कारणथी सूर्य आदित्य कहेवाय छे. " तेनो वृत्ति आ प्रमाणे छे - " हवे आदित्य शब्दनो अन्वर्थ-सार्थकता जणावता जणावे के सूर्य हे आदि प्रथम जेओनो मध्ये ते सूर्यादिक कहेवाय, कोण कहेवाय ? बतावे के समयो- अहोरात्रादि काळ भेदोमां जेओनां बीजो विभाग न थइ शके एवा अंशो. ते समयो कहेवाय, ते आ प्रकारे सूर्योदयनी अवधिने करीने अहोरात्रानो आरंभक समय गणाय छे, तेमज आवलिका, मुहूर्त्तादिको पण गणाय छे, ते कारण माटे सूर्यने आदित्य एम कहेवाय छे. अहोरात्र, समयादिओनी आदिमां थएल ते आदित्य कहेवाय. आ प्रमाणे व्युत्पत्ति करेल होवाथी. " एवीज रोते श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति सूत्रमां जणावेल छे के: - हे भगवन् शाथी सूर्य आदित्य एम For Private And Personal Use Only

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