Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 259
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यश्री भ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं. २३३ छे. अन्य शास्त्रोनेविषे पण कहेल छे के:- "उदयमां जे तिथी होय तेज प्रमाण, बीजी स्वीकारवी नही बीजी स्वीकारता आणाभंग याय, आणाभंगथी मिध्यात्व लागे ?" जे तिथीमां सूर्य उदय थाय ते तिथीमा पच्चखाण, पूजा, प्रतिक्रमण अने पौषध अनुष्ठान कर जोइए २" इत्यादि बतावेल छे. अत्यन्त थोडा अंधारावाळी माटेज अजवाळी छतां अंधारीपडवे कहेवाय छे, अल्प जेमां उद्योत - अजवाळु छे खरेखर संपूर्ण जेमां अंधारुं छे, छतां पण अजवाळी पडवे कहेवाय छे. २००. एवीरीते उदयतिथी पण जाणवी. संपूर्ण अंधारी एवी उज्वलतिथीनी माफक आवश्यक वेलाए तिथीनुं ग्रहण कोइ जगाए पण देखवामां आवेल नथी. २०१. छतां पण ए सबंधीना अक्षरो जो गीतार्थो बतावे तो ते अक्षरो मने प्रमाण छे, तत्वतो तेज गीतार्थे जाणे. २०२. आवश्यकवेळा पर्वतिथी होय तेमां प्रतिक्रमण, ते पर्वतिथी पूर्वाह्न उत्पन्नथली होय के अपराह्नमां पण उत्पन्न थएली होय, ते विचार करो. २०३. ते पर्वतिथी अपराह्नमां जो उत्पन्न थली होय तेमां प्रतिक्रमण कर ते व्याजवी छे, पण पूर्वा • मां उत्पन्न थली होय तेमां प्रतिक्रमण करवुं ते व्याजबी नथी, ते पण जो सूत्रमां कहेल होय, पछी भले ते अजवाळीया पक्षी होय के अंधारीया पक्षनी होय, ते ते सर्व मने प्रमाण छे. २०४. निथेथी पहेलो दिवसहोय अने ते दिवसनी रात्रि ते दिवसना पाछल आवनारी जाणवी, एबीना श्रीजंबुद्वीपपनत्ति, सूर्यपन्नत्ति तथा चंदन त्तिसूत्रोम कहेल छे. २०५. For Private And Personal Use Only

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