Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२६
श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुषाद.
चतुर्दशी जाणवी. कार्तिक अमावास्याए श्रीवीरजिनवरेन्द्रनु निर्वाण थयु, ते कारणे त्यारे शुद्ध पोषध-उपवास स्थाप्युं. १७९. काशी, कोशल देशना राजा विगेरे अढार गणराजाओ मलीने पख्खिय तथा अमावास्यामां त्यारे कर्यु. १८०. आ सुवचनश्रीदशाश्रुतस्कंघसूत्रनां आठमां अध्ययनमां कहेल छे. फेर वळी, तेज सूत्रमा पख्खिनी आरोपण अथवा आलोवणा कहेल छे. १८१. ते आलोवणानुं ग्रहण करवू अमावास्याए निषेधेल छे, माटे अमावास्यामां पख्खि न होय; ज्यारे अमावास्यानु निषेध कयु. त्यारे पूनमर्नु पण पख्खि न थाय एम जाणवू. १८२. जे कारणथी पंचमांग श्रीभगवतीसूत्रना पनरमांशतकमा श्रीवीरनाथनो विहार पडवाना दिवसे अने तेना पहेला दिवसे चोमासी एम कहेल छे. १८३. तेथी त्रण चोमासी पूनमना दिवसे जाणवी. वळी पख्खि तथा चोमासी एक दिवसमां न थाय. १८४. अंगसूत्रोमा तथा उपांगसूत्रोमां चतुर्दशी, अष्टमी, उद्दिष्टा-जिनकल्याणिक तिथी तथा त्रण पूर्णिमा ए रीते चार पर्वतिथीओनां नामो कयां छे. १८५. बीजोअंग श्रीसुयगडांगसूत्र, तेनां त्रेवीसमां अध्ययननीवृत्तिमा चोपर्वी संबंधी खुल्ला अर्थ रहेला छे, एम जाणवू, ते आ प्रकारेः-आठम तथा चौदश. १८६. तेमज उद्दिष्टा शब्दे करी श्रीजिनवरेन्द्रोनी महाकल्याणकतिथिओ अने चोमासीनी त्रणपूर्णिमा तिथीओज छे, एम जणावेल छे. १८७. ए कारणे चौदसना दिवसे पख्खिय जाणवू, जे
For Private And Personal Use Only
Page Navigation
1 ... 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291