Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
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२२४
श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुषाद.
कहेल छे. १७१. पख्खिय, चोमासी अने संवच्छरीपतिक्रमणनो बीजो कोइ विधि सूत्रमा देखातो नथी. वृत्तियोमा जे विधि कहेल छे, ते पण सर्वगच्छोमां थतो नथी. १७२. सर्वांनी पूर्व सरिओए करेल पोतपोतानां गच्छनी आचरणा छे, तेमां जे प्रवचनमार्गना अनुसारे आचरणा, ते आचरणा पण आणा सरखी छे. १७३. हवे पख्खिय क्यार करवं तेनुं अधिकार जणावे छे:-पख्खिय अने पोषधमां समाधिने प्राप्त थएला साधुओनां चित्त समाधिस्थान श्रीदशाश्रुतस्कंध सूत्रने विषे दश कह्यां छे. १७४. अहिं चूर्णिमां जणावेल छे के:"परिखमा परिखकार्य अने पख्खिमां पोषधोपवास आठम अने चौदशमां, समाधि एटले ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप भावसमाधिमां प्राप्त थएला” इत्यादि बचन होवाथी, अहिं श्रीदशाश्रुतस्कंधसूत्रने विषे पख्विय शब्द छे ते चौदशीने कहनार जाणवो, जे कारणे पख्खिनो पर्याय चौदश शब्द कहेल छे पण पख्खिय शब्दे पूर्णिमा कहेल नथी. १७५. वळी श्रीभगवतीसूत्रना बारमा शतकनां पहेला उद्देशामां पख्खिय-पोसह शब्द चतुर्दशीनो संभव छे. १७६. जे कारण माटे प्रथम दिवस विना पोषध पण ग्रहण कर्यु नथी, तेथी एक दिवसचेंज आराधन इहां खुल्लु जणाय छे. १७७. तेनी ' श्रीभगवतीसूत्रनी' वृत्तिमां चौदश के पूनम आदि लेवानुं विशेष कांइ जणावेल नथी; ए कारणे चौदशीमांज पख्खिय थाय. १७८. जे माटे पूर्वाचार्योए कहेल छे के:-"अहम, छट्ट
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