Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

Previous | Next

Page 254
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुवाद. पख्खिय शब्दे चर्तुदशी एम श्रीपूर्वाचार्योए कहेल छे. १९१. वळी बीजं श्रीजंबुद्वीपप्रज्ञप्ती, श्रीचंदप्रज्ञप्ती, श्रीसूर्यप्रज्ञप्ती, श्रीभगवती अने श्रीअनुयोगदारसूत्रोमां अने बीजी जगोए पण एजप्रमाणे कहेल छे. १९२. पनरदिवसें पक्षथाय, बे पक्षनो मासथाय, बारमासनो वर्ष थाय, ए काळ प्रमाण छे, ए पर्वप्रमाण न होय. १९३. जे तिथीओमांज प्रतिक्रमण थाय एवा मोटा त्रणपणे पख्खी, चोमासी अने संवच्छरी ते आवा काळ प्रमाणनी गणनाए न थाय. १९४. श्रावण वद पडवाए तथा अभीचनक्षत्रे संवच्छरनो प्रारंभ थाय छे, एम जिनवरोए कहेल छे. १९५. अने जो एवीरीते गणिए तो आषाढीपूनिमें वरसथाय, पण भादरखासुदपांचमनादिवसे ए वरस केवीरीते थाय ? १९६. तेम बीजापक्षमा मास थाय तो मासस्थानमां चोमासी केम थाय? वळी आठ मासने विषे अने बारमासनेविषे शुं करवु ? एम करीए तो एबधुं विरुद्धजेवू थाय. १९७. ए प्रमाणे श्रुतने सांभळीने दिवसोनी गणना करी पर्वतुं करवू संभवतुं नथी, अहिं गोतार्थों जे कहे तेज प्रमाण. १९८. ए प्रमाणे पख्खीसंबंधी अधिकार जाणवो. हवे उदयिकतिथीनो अधिकार बताये छे:-श्रीचंदपन्नतिसूत्र तथा श्रीसूरपन्नत्तिसूत्र ए बे उपांगसूत्रमा तथा पंचमअंग श्रीविवाहपन्नत्तिसूत्रमा उदयतिथीनुं प्रमाण बतावेल छे. १९९. अहिं सूत्रनां पुरावा बतावे छे. श्रीजंबूद्वीपसूत्र मूलमां जणावे छे के:-" हे भगवन् ! For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291