Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 217
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यश्री भ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाळा पुस्तक ५३ मुं. १९१ जुदा पाडी, साधुओने समर्पण करी, सेस बाकी रहेल काजो जंतु रहित विशुद्ध भूमिमां परठवीने गुरु आगल आवी इरियावहियं पडिक्कमी आलोयणा करे. ४८-४९ गुरुने पुच्छी वसतिनी चारे बाजु यावत् शो हाथ सुधी जोइ जाणीने 'शुद्धावस' एम कहे. ५० त्यारबाद कालग्रहण करी विधिपूर्वक सज्झायने पठावी गुरुथी अनुज्ञा कराएला पाँच प्रकारनी सज्झायने करे. ५९ त्यां सुधी के यावत् दिवसनो चोथो भाग पोरसी काळमां कांइक न्यून थाय ( रहे ) त्यारे मोटा नानानां क्रमे करीने जे नाना शिष्य होय, ते उठीने एम बोले " हे भगवन् ! उघाडा पोरसी" त्यारे सर्व साधुओ पण उपयोग वाळा थाय, पछी विनयपूर्वक पोतपोताना आसनथी उठीने गुरु पासे आवी एक खमासमण आपीने इरिया वही पडिक, खमासमण दइ मुहपत्ति पडिलेहण करे, पछी खमासमण दइ बधाए बोले 'इच्छा कारेण संदिसह भगवन् ! भंडोवगरण पडिलेहणं संदेसावेमि, बोजे खसासमणे भंडोवगरणं पडिलेहेमि. आ बीना श्री उत्तराध्ययनना छatani अध्ययननी बावीसमी गाथामां छे. ए प्रकारे वचन बोलीने भाजन निश्रित सात उपकरणोनी भंडक पडिलेहणा तथा प्रकारे करे. १ - पात्र, २- पात्रबंधन, ३ - पात्रने स्थापन करवानुं वस्त्र, ४- पोंजणी, ५ - पडला, ६ - पात्रने ढांकनानुं वस्त्र, अने ७ - गुच्छा. ए संबंधी श्री उत्तराध्ययन सूत्रना छवीशमां अध्ययननी गाथा २३ थी ३१ सुधीमां विस्तारे For Private And Personal Use Only

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