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आचार्यश्री भ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं. १९९
वाळाए मूलग्रन्थथी जोइ लेवुं. आवश्यक चूर्णिमां अने श्री हरिभद्र सूरिए रखेल आवश्यक वृत्तिमां उपर बतावेल जे प्रतिक्रमण विधि को छे ते असे संक्षेपथी को. ९५. अहिं देवसिय-राइय प्रतिक्रमणमां पांचमा अध्ययनमां त्रण वांदणा कहेला छे अने चोथा अध्ययनमा चार चांदणा कहेला छे. ९६. त्यां विचारणा छे -सूत्र कोने कहेवाय - गणधर रचित होय तथा प्रत्येक बुद्ध रचित होय तेमज श्रुतकेवळी रचित होय अने संपूर्ण दशपूर्वधर रचित होय तेने सूत्र कहेवाय छे. एम मलधारि श्री हेमचंद्र सूरिना शिष्ये रचेल संघयणीमां कहेल छे. तथा श्रीआचारांग सूत्रना चोथा अध्ययनमां hamatar ने केवलीना वचन समान कहेला छे. तेम श्रीनंदी सूत्र संपूर्ण दश पूर्वी विनाना वचनमां सूत्रनी भजना बतावेल छे. ए प्रकारे सूत्रना वचनथी चौद पूर्वी अने केवलीनुं कल सूत्र कहेवाय अने ते सूत्र अन्योन्य अविरुद्ध होय छे. ९७. आवश्यक लघु वृत्तिमां तथा बृहद् वृत्तिमां तेमज जीर्णनिर्युक्ति पुस्तकमां पण सेंकडो प्रक्षेप गाथाओ कहेली छे, तेथी आ गाथा पण तेवीज हशे ? एम संभावना थाय छे, कारण के परस्पर विरुद्ध होवाथी, पछी तो जेम गीतार्थी कहे तेज प्रमाण. श्री आवश्यकसूत्रमां तथा श्रीपाasaani कं छे के आज निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य छे, प्रधान छे, केवली कथित छे, संपूर्ण छे, मोक्षने आपनार छे, यावत्परस्पर अविरुद्ध छे, आवा
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