Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 233
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री भ्रातृचंद्रसरि ग्रन्थमाळा पुस्तक ५३ मुं २०७ स्थाने करो निम्रन्थ अने निग्रन्थीओने संपूर्ण केवलज्ञान अने केवलदर्शन उत्पन्न थवा- होय तो उत्पन्न थाय छे. ते आ प्रकारे-स्त्रीकथा. भक्तकथा, देशकथा अने राजकथाने करनारा न होय १, विवेके करी अने कायोत्सर्गे करी सम्यक् प्रकारे आत्माने भावनारा होय २, मध्याह्न रात्रिना समय-अवसरमा धर्मजागरिकावडे जागनारा निद्रानो क्षय करनारा होय ३, फासुनिर्जीव अने कल्पे तेवो ते पण उच्छ-थोडो थोडो अने यांचाथी प्राप्त थएल एवा आहार-पाणीनी सम्यक प्रकारे गवेषणा करनार होय ४, आ चार कारणे साधु-साध्वीओने केवलज्ञान-केवलदर्शननी प्राप्ति थाय." वळी आज सूचना पांचमा अध्ययनना बीजा उद्देशामा जणावेल छे केः-"मूतेला साधुओनां शब्द, रूप, रस, गन्ध अने स्पर्श जागता अग्निनी माफक शक्तिवाळा होय छे, केमके कर्मबन्धना अभावY कारण अप्रमाद-सावधानपणु तेओने ते वखते न होवाथी शब्दादिक कर्म बंधननां कारणो थाय छे. अने जागता साधुओना शब्दादिक सूतेलानी माफक सूतेला होवाथी राखथी ढंकाएल अग्निनी माफक हणाइ गएल शक्तिवाला थाय छे, केमके कर्मबन्धन- कारण प्रमाद तेनुं ते वखते तेओमां न होवापणुं होवाथी, शब्दादि कर्मबन्धनना कारण थता नथी." वळी श्री भगवती सूत्रना पांचमां शतकना चोथा उद्देशामां कहेल छे के:-" हे भगवन ! छद्मस्थ मनुष्य सुखेथी जागे एवी निद्राने अने उभा तथा बेठा निद्रा करे ते प्रचला, तेने करे ? हा, हे गोतम ! करे." For Private And Personal Use Only

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