________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आचार्य श्री भ्रातृचंद्रसूरि प्रन्थमाळा पुस्तक ५३ मुं. २०९
समिति पूर्वक यतनाए चालतो, हाथ, पग विगेरेनो विक्षेप न करतो यतनाथी उभी रहे, हाथ, पग लांबा, हुंका न करतो यतना पूर्वक बेसे, रात्रिमां सावधान, अतिनिद्रा विगेरेने दूर करतो यतना पूर्वक सूए, स प्रयोजन अने प्रणीत आहारनुं त्याग करतो यतना पूर्वक खातो अने कालोचित, कोमल साधुयोग्य भाषाए यतना पूर्वक बोलतो साधु माठा एवा ज्ञानावरणादि पापकर्म बांधे नहीं. ८" अहिं ' जयं सए ' एनो अर्थ यतनापूर्वक प्रयत्न करतो साधु शयन करे. अहिं कोइ एम कहे छे के - श्रीजिनेश्वरे शयननुं कथन करेल होवाथी निद्रानो उपदेश आपेल छे. एम कहे छते कहेनाराने कहिए छीए: - शयन शब्दे एकान्ते निद्रा अर्थ न थाय, प्रचलामा व्यभिचार आववाथी, बेठेलाने पण निद्रा आवे छे. निद्रामां सात अथवा आठ कर्मोनो बन्ध छे, अने शयनमां भजना छे. यतनाथी शयनमां इर्यापथिकी क्रिया वे समय स्थितिवाली पण होय छे, अने निद्रामां तो एकान्ते सांपरायिकीज क्रिया होय छे, तेमां संशय नथी. सूता- शयन करता थका अनन्ता मुक्तिए गया, अनन्ता जसे अने संख्याता मुक्तिने पामे ले पण निद्रा करतो कोइ मुक्तिए गयो नथी, जतो नथी अने जसे पण नहि. वळी श्रीसुयगडांगसूत्रमां तथा श्री भगवती सूत्रां पण कल छे के:-" उपयोगे वर्तनार, शयन करनारने इरियावहिया किरिया लागे छे. " एम निद्रामां नथी, शयनमां यतना शास्त्रोक्त जणाय छे, परंतु निद्रामां नथी
ક
For Private And Personal Use Only