Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 221
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यश्री भ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाळा पुस्तक ५३ मुं. १९५ श्री उत्तराध्ययन सूत्रना छवीसमां अध्ययनमां बतावेल छे केसाधु-साध्वीओ छ कारणे आहार पाणीनी गवेषणा न करे, ए बीनाने जाणतो. वळी श्रीसिद्धांत ( श्री उत्तराध्ययन सूत्रना चोवीसमां अध्ययननी गाथा १७-१८ मी) मां बतावेल (अनापात, असंलोक विगेरे रुडा दश गुणवाळी ) tfse संबंधी शुद्धि करीने अने तृण, दगल विगेरे ग्रहण करी उच्चारादिने परवे. एज भाव श्री आवश्यक वृत्तिमां छे. ७१. दिवसे उत्तर तरफ अने रात्रे दक्षिण तरफ मुख राखी जतनापूर्वक बेसी साधु वडीनीत तथा लघुनीतनी वाघाने टाले. ७२. चोथी पोरसी प्राप्त थये उठीने वंदन करो खमासमण आपी बोले पडिपुन्ना पोरसी ! ए प्रकारे सांभळी सर्वे वे खमासमण विधिपूर्वक आपीने "भंडनिरूखेवं संदिसह भंडनिखेवं निखिखवामि " एम बोली पोतपोताना भांड उपकरणाने स्थाने मूके. ७३-७४ पछी विनयपूर्वक वंदन करीने साधुओ अंगबाह्य, अंगमविष्ट अथवा कालिकभुत, उत्कालिक श्रुतनी स्वाध्यायने करे. यतः - श्रोउत्तराध्ययनसूत्रना छवीसमां अध्ययननी छत्रीसमी गाथामां कहेल होवाथी. ७५. ज्यां सुधी वे घडी न्यून पोरसी थाय त्यां सुधी गुरु सन्मुख स्वाध्याय करीने त्यार पछी पडिलेहण काळ जाणी विनयपूर्वक इरियावहि पक्किमिने पडिलेहणा करे, तेमां मुहपत्ति, देह, पायपुंछन अने त्यार बाद रजोहरणनी पडिलेहणा करे. त्यार पछी वे स्थोभ वंदणे करी अंगपडिलेहणा करे, For Private And Personal Use Only

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