Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 212
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ श्रीसप्तपदीशाख-गुजरातीभाषानुवाद. नी मर्यादा, तेनी चोभंगी बतावेल छे, तेमां जिनाज्ञा सहित गच्छमर्यादा रूप चोथो भांगो वखाणेल छे. १० अथवा जिनाज्ञाविरुद्ध गच्छ मर्यादाने छोडी श्रीजिनाज्ञाने अनुसरनारा जे मुनिओ व छे, ते मुनिओ निन्दवा लायक नथी, एम श्रीगच्छाचार पयन्नामां बतावेल छे. ११ वळी जे पूर्वे सेवेली गच्छमर्यादा छोडवा समर्थ नथी अने सुधर्मने निंदता नथी, ते पण जिनाज्ञा आराधक जाणवा. ए बीना व्यवहार सूत्रनी वृत्तिमा पूर्वाचार्योए जणावेल छे. १२ जे गच्छ मर्यादा श्रीजिनेश्वरदेवे कहेल अने श्रीगौतमादि धीरपुरुषोए सम्यक प्रकारे सेवेल, ते गच्छमर्यादा ओलंघवी न जोइए. ए प्रकारे श्रीमहानिशीथ सूत्रमा कहेल छे. १३ सम्यक् दर्शनमां रक्त, चरण सत्तरी अने करण सत्तरी संबंधि गुण ग्रहण करवामां उजमाळ, आगम मर्यादा सेक्वामां तलालीन अने संसारना भयथी डरनारा मुनियो भाग्यशाळी जाणवा. १४ श्रीवीरजिनेश्वरे गौतम स्वामी प्रमुखोने आ प्रकारे कर्तुं छे-हे गौतम ! मारा शासनमां बारसो पचास कांइक अधिक वर्ष गए छते साधुओमां परस्पर भेद पेदा थशे, घणा कुगुरुओ थशे. अहंकारी ममकारी रिद्धिगारवी रसगारवी सातागारवी थशे,घणा कषायी 'अमे साचा' एम बोलनारा थशे. नथी जाण्यो सिद्धान्त सद्भाव जेमणे एवा आचार्यों थशे, हे गोतम! कॉइकज सन्मार्गी थशे; ए प्रकारे जाणो, एम श्री महानिशीयसूत्रमा कर्तुं छे. १५-१६ तेथी हाल जुदा जुदा गच्छोमां For Private And Personal Use Only

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