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उत्त्रतिरस्कारनामा- विचारपट :
अनुमोदिवडे पुण मनि छ । तर साधु किम अनुमोदइ । तथा
कुशलानुबंधि- अध्ययने
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साहूण साहुचरियं. देसविरयं च सावयजणाणं । अणुमन्ने सव्वेसिं, सम्मत्तं सम्मद्दिट्ठीणं ॥ १ ॥
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Fri श्रावकनी देशविरति अनुमोदिवी कही । अनई ज ए पुष्पादि पूजा करतां श्रावकनई विरति प्रमाण थाइ त ए कर्त्तव्य साधु सही अनुमोदइ । सावधानुष्ठान विरतिमा हि नथी जाण्यउ | अनइ जिहां छक्कायनउ आरंभ, तिहां सावध बोलाइ | अनई कदाचि पूजानइ अर्थि सावद्य नयी तर साधु तथा सामाइकधर श्रावक स्थई न करई । तथा वली परंपराइ इम सांभल्य जे प्रतिमा केतली एक वही पूठि श्रावक पुष्पादिक पूजा न करइ । तर सावबसही छ ।
तथा श्री आवश्यक निर्युक्तिमाहि: -
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चेइय कुलगणसंघ, अन्नं वा किचिकाउ निस्साणं । अहवा वि अज्जवयरं, तो सेवंती अकरणिज्जं ॥१॥" sri aurस्वामिनां आण्यां फूल अकरणीय बोल्यां । तर जाणिज्यो सावध सही थयउ । परं जे छक्कायनइ आरंभि सावद्य न जाणइ, ए मति श्री जिनशासनमाहि नथी । अनई जे आरंभनइ आरंभ जाणी किणही लाभ हेति हियानई उल्हासि धर्मकर्त्तव्य करइ तेहनी मति समी छइ । जइ इम न हुइ त परदर्शन अनई स्वदर्शन अंतर किसउ । यदुक्तं - श्री उत्तराध्ययने - (१२) "कुरूं च जूवं तणकट्टमरिंग, सायंच पायं
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