Book Title: Sandeh Vishaushadhi Nam Kalpsutra Vyakhya
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देह रिझलरिदंदुहिततविततघणसिरतंतीतलतालतुडियघणमुयंगपमुष्पवाश्यरवेणंति' दृश्यते, तत्र अ. | या हतान्यव्याहतानि नाट्यगीतवादितानि, तथा अाहतेभ्यो मुखहस्तदंमादिनिराकुट्यमानेभ्यः शंखा दिभ्यो यो वस्तेन महता विपुलेन, तत्र शंखाः प्रतीताः, शंखिका ह्रस्वशंखः, खरमुखिका काहला, १७ पोया महती काहला, पिरिपिरिया कोलिकपुटकावनष्मुखो वाद्यविशेषः, पणयो नंम्पटहो लघुपट हो वा, तदन्यस्तु पठह शति, भंभति ढका, होरंभत्ति रूदिगम्या, नेरी महाढक्का, मलरी वलयाका रो वाद्यविशेषः, दुन्निर्देववाद्यविशेषः, अथोक्तानुक्तसंग्रहगाथाहारेणाह-ततेत्यादि, ततानि वी. पादिकानि, तानितशब्दा अपि तताः, एवमन्यदपि पदत्रयं. नवस्मयं विशेषः ततादीनां. ततंवी पादिकं ज्ञेयं । विततं पटहादिकं ॥ घनं तु कांस्यतालादि । वंशादि शुषिरं स्मृतं ॥ १ ॥ तथा तं. त्रीत्यादि प्राग्वत् . पटुना ददपुरुषेण प्रवाद्यत इति पटुप्रवादितः, स चासौ घनमृदंगश्च, प्राकृतत्वा विशेषणस्य परनिपातस्तत एतेषां खस्तेनेति व्याख्येयं. ‘दिवाइंति ' देवजनोचितान : नोगभोगाईति' अतिशयवनोगान, आपत्वान्नपुंसकता विहरत्यास्ते, 'मं चणंति' केवलः परिपूर्णः स चासौ कल्पश्च कार्यकरणसमर्थ इति केवलकटपः, For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156