Book Title: Sandeh Vishaushadhi Nam Kalpsutra Vyakhya
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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संदेह- कति ' रत्नसंकटं च तत्कटं चोत्कृष्टं रत्नसंकटोत्कटं, 'गंथिमेत्यादि ' इह ग्रंथिमं ग्रंथननिवृत्तं मा. सूत्रग्रथितमालादि, वेष्टिमं वेष्टननिष्पन्नं, पुष्फलंबूसकानि पूरितं येन वंशशलाकामयपंजरकादि कू
_दिर्वा पूर्यते, संघातिमं तु यत्परस्परतो नालसंघातेन घात्यते, 'अलंकियत्ति' अलंकृतश्चासौ ६७ कृतालंकारोऽत एव विकृषितश्च संजातविषश्वेत्यलंकृतविभूषितः, 'वेरुलियनिसंतदमें' वैसूर्यस्य
'निसंतत्ति ' भासमानो दंडो यस्य स तथा तं, 'पलंबसकोरिंटमझदामं ' प्रलंबानि सकोरिटानि कोरिंटकपुष्पगुन्बयुक्तानि माव्यदामानि पुष्पमाला यत्र, चंऽमंडलनिनं परिपूर्णचंद्रमंमलाकारमुपरि धृतं यत्तेन तथा, 'नाणामणीत्यादि' नानामणिकनकरत्नानां विमलस्य महार्हस्य तपनीयस्य च सत्कामुज्ज्वलो विचित्रौ दंडौ ययोस्ते तथा, कनकतपनीययोः को विशेषः, नच्यते, कनकं पीतं, तपनीयं रक्तमिति, विजियानत्ति' देदीप्यमाने लीने इत्येके, ‘संखककुंदत्ति' शंखांककुंददकरजसाममृतस्य मथितस्य ततो यः फेनपुंजस्तस्य च सन्निकाशे ये ते तथा, श्द चांको रत्नविशेषः.
'चामरान शति' यद्यपि चामरशब्दो नपुंसकस्तस्य च कलिंगे रूढम्तथापीह स्त्रीलिंगतयान| र्दिष्टस्तथैव गौडमते रूढत्वादिति-अथ प्रस्तुतवाचनानुश्रियते, ‘मंगलेत्यादि ' मंगलमूतो जय
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